ये शायद साल 1997 या 98 की बात है। सतपुड़ा की लंबी बरसातें ख़त्म हो चली थीं और मौसम थोड़ी उमस लिए हुए था। उस रोज़ शाम के कोई 6 या साढ़े 6 बजे होंगे, जब हम लोग क्लब कॉलोनी की एक क्रिकेट टीम से 15-16 ओवर्स का मैच मुश्किल से जीतने के बाद ख़ुशी मना रहे थें। शर्त के पैसे मिल चुके थें, मगर पैसों से ज़्यादा तसल्ली हारी हुई टीम को चिढ़ाने में मिल रही थी। उस मैच के दौरान दोनों ही टीमों के बीच काफी बहस और गहमा गहमी हुई थी और करीब-करीब झगड़ा होते हुए बचा था। आख़िर में विजेता साबित होने से लड़कों को कुछ ज़्यादा ही मज़ा मिल गया था और उसका जश्न भी खूब मनाया गया। शाम के ढलते तक हमारी टीम के कुछ ख़िलाड़ी पैदल तो कुछ अपनी सायकल लिए घर की तरफ निकल चुके थें। वहां सिर्फ मैं और राजेश बचे हुए थें और आख़िर में किट चेक करने के बाद हम भी निकलने की तैयारी में थें। दूसरी टीम के ज़्यादातर लड़के मैदान के दूसरे हिस्से में खड़े हुए कुछ बात कर रहे थें। राजेश और मैं घर जाने के लिए निकलें कि तभी उनमें से किसी ने राजेश को कुछ कहा। मुझे ठीक से तो याद नहीं.. पर हाँ, उसे बंगाली कहते हुए कोई गाली दी थी। गाली सुनते ही राजेश ने सायकल रोकी और ...