अपने दिल की सुनो.... अपने मन की करो.... ज़िंदगी एक बार मिलती है और इसे अपने ही तरीके से जीयो। साफ और सीधे तौर पर 3 इडियट्स का मैसेज ये ही है। अफ़सोस कि ये फिल्मी सी लगने वाली बातें स्कूल या कॉलेज में नहीं सीखाई जाती... घर पर मां बाप भी नहीं सीखाते। इसलिए इन्हें सीखाने ख़ुद आमिर और उनकी टीम को आगे आना पड़ा। हिंदुस्तान को जादू की झप्पी और गांधीगिरी सीखाने वाले राजकुमार हीरानी को भी शायद इसलिए ऑल इज़ वेल का नारा देना पड़ा। कहानी... 3 इडियट्स की कहानी चेतन भगत के नॉवेल फाइव प्वाइंट समवन पर बेस्ड है... लेकिन स्क्रीनप्ले और ट्रीटमेंट में मेज़र चेंजेज़ है... जो ज़रूरी भी थे। फिल्म की कहानी फरहान कुरैशी यानी आर माधवन के फ्लाइट छोड़ कर भागने से शुरू होती है और आगे ऐसी रफ्तार पक़डती है जो क्लाइमेक्स पर जाकर ही थमती है। फरहान अपने दोस्त राजू यानि शरमन जोशी को साथ लेकर अपने तीसरे दोस्त रैंचो यानि आमिर को ढूंढने निकलता है... जो कॉलेज के बाद कहीं खो गया था। इस पूरे सफ़र के दौरान कहानी फ्लैशबैक में आती-जाती रहती है। कॉलेज के शुरूआती दिनों में फरहान और राजू के साथ रैंचो की मुलाकात और फिर तीनों की मौज...