26 जून 2009, हर रोज़ की तरह ही सुबह-सुबह तैयार होकर ऑफिस के लिए निकलता हूं। सड़क पर आकर रिक्शा लिया ही था कि अपने दोस्त रामेश्वर मिश्रा का एसएमएस पाता हूं। पढ़ने पर पता चला कि किंग ऑफ पॉप नहीं रहे। पहले तो यकीन नहीं आया... क्योंकि कई बार एमजे की मौत पर इस तरह की ख़बरें सुन चुका था जो कि बाद में महज़ अफवाह साबित हुई। लेकिन बात एमजे की थी इसलिए वापस रामेश्वर को फोन लगाकर पूछता हूं। वो ख़बर को पुख़्ता बताता है.... वो भी बीबीसी के हवाले से। फिर भी पूरा यकीं नही आता और अपने मित्र और गुरु भूपेंद्र सोनी को फोन लगाकर टीवी देखने को कहता हूं और कुछ देर बाद वो ख़बर को सच बताते है। ऑफिस तक आते-आते कई सारे विचार आते है... सबसे पहला ये कि अपने शो में एमजे को किस तरह से आख़िरी सलाम दूं जबकि मेंरे पास सिर्फ एक दिन है। वहीं पहले से तैयार सारे पैकेजस भी बदलने पड़ते। ऑफिस के अंदर दाखिल होने पर पता चला कि अपने शो के अलावा शाम को भी माइकल पर आधे घंटे का स्पेशल करना है। आनन-फानन में लिखने बैठता हूं लेकिन दिल और दिमाग़ काम नहीं करता... और ना ही अंगुलिया चलती है की-बोर्ड पर। और चले भी कैसे ? माइकल जैसे महान और बड़े कलाकार पर कुछ लिखने के लिए शायद मैं बहुत छोटा शख़्स हूं। लेकिन फिर भी ये मेरा काम है और मैं ख़ुद भी माइकल को trubute देना चाहता था... सो लिखना शुरु किया और लिखता ही गया। मैं शुक्रवार सुबह 10 बजे से लेकर शनिवार रात 10 बजे तक लगातार 36 घंटे ऑफिस में ही रहा और एमजे पर दो शो बनाए... अकेले दम पर इतना काम करना सचमुच बेहद मुश्किल था इसलिए रामेश्वर से काफी मदद ली। एमजे पर मैने दो बेहतरीन शो बनाए। जिनमें मैंने माइकल की मौत की वजह पर बहस करने से ज़्यादा तवज्जो उनके करियर और ज़िंदगी को बयां करने पर दी। आख़िर माइकल महान क्यों है... क्यों उनके जैसा कोई और नहीं हुआ... और न ही होगा। इसके लिए मुझे विस्तार से बताना होगा और आपको भी तस्ल्ली से पढ़ना होगा। चलिए माइकल पर अपनी सोच को उनके जन्म से लेकर मौत तक अलग-अलग भागों में बांटता हूं।
ये 1994-95 के सीजन की बात है... मैं 6वीं क्लास में पढ़ रहा था। हमारी क्वार्टर के पास ही एक सरकारी स्कूल था जिसे पूर्वे सर का स्कूल कहा जाता था। झक सफ़ेद कपड़े पहनने वाले पूर्वे सर थोड़ी ही दूर स्थित पाथाखेड़ा के बड़े स्कूल के प्रिंसिपल केबी सिंह की नक़ल करने की कोशिश करते थें.. लेकिन रुतबे और पढाई के स्तर में वो कहीं भी केबी सिंह की टक्कर में नहीं थें। अगर आपने कभी किसी सरकारी स्कूल को गौर से देखा हो या वहां से पढाई की हुई हो तो शायद आपको याद आ जाएगा कि ज़्यादातर स्कूलों में ड्रेस कोड का कोई पालन नहीं होता। सुबह की प्रार्थना से ग़ायब हुए लड़के एक-दो पीरियड गोल मारकर आ जाया करते हैं। उनकी जेबों में विमल, राजश्री की पुड़िया आराम से मिल जाती है और छुट्टी की घंटी बजते ही बच्चे ऐसे क्लास से बाहर निकलते हैं जैसे कि लाल कपड़ा दिखाकर उनके पीछे सांड छोड़ दिए गए हो.. ऐसे ही एक सरकारी स्कूल से मैं भी शिक्षा हासिल करने की कोशिश कर रहा था... सितंबर का महीना लग गया था... जुलाई और अगस्त में झड़ी लगाकर पानी बरसाने वाले बादल लगभग ख़ाली हो गए थे। तेज़ और सीधी ज़मीन पर पड़ती चमकती धूप के कारण सामने वाली लड़कियों की क
----चुटकी----
ReplyDeleteचीन पंच
ओबामा सरपंच,
भारत के खिलाफ
शुरू हो गया
नया प्रपंच।
achchhaa prayaas hai lage rahiye!!!
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