
आज सुबह अख़बार पलटते हुए टाइगर वुड्स पर प्रीतिश नंदी का लेख पढ़ने को मिला। मैं बहुत पहले से ही नंदी साहब के लेखन का क़ायल रहा हूं। वो कमाल का लिखते है और ये बात जगज़ाहिर है। जब अमेरिका और हिंदुस्तान समेत दुनिया भर का मीडिया टाइगर वुड्स के चरित्र की धज्जियां उड़ा रहा है तब नंदी साहब का ये लेख वाक़ई सोचने पर मजबूर कर देता है। क्या वुड्स सचमुच में खलनायक है? किसी महान खिलाड़ी के किरदार की बखिया सिर्फ इसलिए उधेड़ दी जाए क्योंकि वो अपनी बीवी के साथ वफ़ा नहीं कर सका। आप एक खिलाड़ी की महानता उसके खेल के आधार पर तय करते सकते है न कि उसकी निज़ी ज़िंदगी के आधार पर। कोई शख़्स अपने बेडरूम में क्या कर रहा है और कैसे कर रहा है इस पर मीडिया या किसी अन्य को सवाल उठाने का हक़ नहीं है। ये उसका अपना मामला है। जैसा कि अब तक साफ़ है वुड्स ने किसी का बलात्कार नहीं किया.. और न किसी पर दबाव डाल कर संबंध बनाएं। जिन भी महिलाओं के साथ वुड्स के संबंध रहे वो उनकी आपसी रज़ामंदी से बने है। फिर वुड्स दोषी कैसे हो सकते है? अगर वो दोषी हैं भी तो अपनी पत्नी के न कि संपूर्ण राष्ट्र या विश्व के। और मीडिया के तो बिल्कुल भी नहीं जो उनकी इज़्ज़्त का एक सिरा हाथ में आते ही उसे लगातार खींचते जा रहा है। कुछ एक महिलाओं के साथ वुड्स के नाजायज़ संबधों के आधार पर उनकी महानता ख़त्म नहीं होती। मैं वुड्स के बारें में ज़्यादा कुछ नहीं जानता,.लेकिन हां... जब भी टीवी या अखबार में इस लाजवाब खिलाड़ी के बारे में पढ़ा या देखा तो वो उनकी किसी खिताबी जीत की ख़बर होती या फिर किसी बड़े ब्राण्ड के साथ उनके जुड़ने की ख़बर। किसी विवाद या पचड़ें में वुड्स का नाम कभी सुनाई ही नहीं पड़ा। शायद ये भी एक वजह है कि मीडिया हाथ आया मौका नहीं जाने देना चाहती। क्योंकि कुछ समय पहले तक ये ही लोग हाथ में माइक और कैमरामैन को साथ लिए उनके पीछे भागते थे, ताकि वुड्स अपनी जुबान हिलाए और दुनिया भर के न्यूज़ चैनल अपने स्पोर्ट बुलेटिन की एक स्टोरी बना लें। आज वुड्स के पीछे भागने की ज़रूरत ही नहीं रही, बस उनकी क्षतिग्रस्त कार के कुछ शॉट्स, उनके साथ संबंध बनाने वाली दो-चार महिलाओं के अश्लील फोटोग्राफ और वुड्स के कुछ पुराने फाइल शॉट्स के ज़रिए घंटे-घंटे भर के बुलेटिन खींचें जा रहे है। सवाल पर सवाल दागे जा रहे है वो भी बिना जवाब कि परवाह किए। और जवाब की परवाह करता भी कौन है? ये सारा तमाशा देखने वाले भी सिर्फ सवाल से मतलब रखते हैं जवाब से नहीं। इसलिए सवाल उठाने वाले भी जवाब देने या खोजने की कोशिश नहीं करते। दरअसल भरे बाज़ार में दूसरो को नंगा होते देखकर मज़े उठाना इंसानी फितरत है। एक महान खिलाड़ी की इज़्ज़त का बाज़ार लगाने वाले ये लोग क्या अपने गिरेबां में झांक कर देखेंगे? क्या कैमरे के सामने खड़े हो कर वुड्स पर सवाल दागने वाले ख़ुद पाक़-साफ हैं? विवाहेत्तर संबंध समाज के लिए कोई नई बात नहीं है... न अमेरिका में और न ही हिंदुस्तान में। फर्क बस पर्दे के पीछे रहने और पर्दे के सामने आ जाने भर का है। आनंद बक्षी साहब ने फिल्म अमर-प्रेम के लिए लिखा था....
कुछ लोग जो ताने देते हैं हम खोए है इन रंगरलियों में,
हमने उनको भी छुप-छुप के आते देखा इन गलियों में..
तो साहब इन गलियों से होकर गुज़रने वाले लोगों में वुड्स न तो पहले शख़्स है और न ही आख़िरी होंगे। उनके चरित्र के जिस पहलू पर इतने सवाल उठ रहे है, वो पहलू कुछ आपके किरदार में भी हो सकता है और मेरे भी किरदार में। वहीं ख़बरों के बाज़ार में वुड्स को बेच रहे लोग भी इससे अछूते नहीं हो सकते। बेहतर होगा कि मीडिया हर बात पर ख़ुद का निर्णय सुनाने की अपनी आदत से बाज़ आए और वुड्स की निज़ी ज़िंदगी का फैसला ख़ुद उन पर और उनकी पत्नी पर छोड़ दें। .
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